अस्माकं देशः भारतवर्षमिति कथ्यते। अस्य महिमा सर्वत्र गीयते। पाठेऽस्मिन विष्णुपुराणात् भागवतपुराणात् च प्रथमं द्वितीयं च क्रमशः पद्यं गृहीतमस्ति अवशिष्टानि पद्यान्यध्यक्षेण निर्मीय प्रस्तावितानि। भारतं प्रति भक्तिरस्माकं कर्तव्यरूपेण वर्तते।
हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है। इसकी महिमा सर्वत्र गायी जाती है। इस पाठ में पहला और दूसरा पद्य क्रमश: विष्णुपुराण और भागवतपुराण से लिया गया है। शष पद्य अध्यक्ष द्वारा बनाकर प्रस्तावित किये गये हैं। भारत के प्रति भक्ति हमारा कर्तव्य है।
पौराणिकी
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे
स्वापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥
हिन्दी अनुवाद : देवता गीत गाते हैं - वे निश्चय ही धन्य हैं जो स्वर्ग और मोक्ष के योग्य साधनस्वरूप भारतभूमि में जन्म लेकर देवत्व रूप को प्राप्त कर लेते हैं।
व्याख्या : पाठ्यपुस्तक पियुपम् द्वितीयों भाग: के पञ्चम: पाठ 'भारतमहिमा' का यह प्रधम पद्य मूलतः विष्णुपुराण से लिवा गया है देवगण भारतभूमि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को घन्य मानते हैं। क्योंकि यह भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने योग्द साधनस्वरूप है। यहाँ जन्म लेकर व्यक्ति देवत्व रूप को प्राप्त कर लेता है। इसी कारण इस भारत भूमि में देवता भी जन्ग लेने की इच्छा रखते हैं ।
2. अहो अमीषां किमकारि शोभनं
प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः।
यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे
मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ॥
हिन्दी अनुवाद : अहो इसका ( भारत भूमि का) आकार कितना शोभायुक्त है कि स्वयं हरि भी इसको देखकर प्रसन्न होते हैं अथवा जिनके द्वारा भारत के प्राङ्गण में मनुष्यों में जन्म लेकर श्री हरि की सेवा योग्य हमारी स्पृहा की जाती है।
व्याख्या : हमारी पाठ्यपुस्तक के भारतमहिमा पाठ में उद्धृत भागवतपुराण का यह पद्य भारतभूमि की शोभा का वर्णन करते हुए यह भाव स्पष्ट करता है कि इसकी शोभा देखकर स्वयं श्री हरि भी प्रसन्न होकर इस भारत के जन्म लेते हैं और हम जो उनकी सेवा के योग्य हैं उनकी स्पृहा के पात्र बनते हैं।
आधुनिकी
3. इयं निर्मला वत्सला मातृभूमिः
प्रसिद्धं सदा भारतं वर्षमेतत्।
विभिन्ना जना धर्मजातिप्रभेदै-
रिहैकत्वभावं वहन्तो वसन्ति॥-
हिन्दी अनुवाद :
यह प्रसिद्ध भारतवर्ष है, यह सदा ही स्वच्छ और ममतामयी मातृभूमि रही है। यहाँ धर्म और जातियों में विभक्त विभिन्न लोग एकन भाव को धारण करते हुए रहते हैं।
व्याख्या :
'भारत महिमा' पाठ के इस पद्य के आधुनिक कवि का आशय यह भारतभूमि सदा से निर्मल, स्वच्छ और अपने वासियों के लिये ममतामयी है भूमि के लोग भले ही विभिन्न धर्मों तथा जातियों में विभक्त हैं पर एकता को धारण करते हैं।
4. विशालास्मदीया धरा भारतीया
सदा सेविता सागरै रम्यरूपा।
वनैः पर्वतैर्निझरैर्भव्यभूति-
र्वहन्तीभिरेषा शुभा चापगाभिः ॥
हिन्दी अनुवाद : हमारी भारतभूमि विशाल, मनोहर रूपवाली, शुभ तथा दिव्य ऐश्वर्व को धारण करने वाली है। यह सागरों, वनों, पर्वतों, झरनों तथा सदा बहनेवाली नदियों से युक्त है।
व्याख्या : हमारी पाठ्यपुस्तक के 'भारतभूमि ' के इस श्लोक के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि हमारा देश भारत एक विस्तृत देश है। इसका रूप अत्यन्त मनोहर है। यह भूमि अत्यन्त शुभ तथा दिव्य ऐश्वर्य को धारण करती है। यह सागरों, वनो पर्वतों, सुन्दर झरनों से युक्त है। यहाँ सदानीरा नदियाँ हमेशा बहती रहती हैं। तात्पर्य कि हमारी भारतभूमि प्राकृतिक रूप से अत्यन्त समृद्ध है।
5. जगद्गौरवं भारतं शोभनीयं.
सदास्माभिरेतत्तथा पूजनीयम्।
भवेद् देशभक्ति: ,समेषां जनानां
पुरादर्शरूपा सुदावर्जनीया॥
हिन्दी अनुवाद : वैसा (जैसा ऊपर कहा गया है) शोभायुक्त और संसार का भूति गौरव यह भारत हमारे द्वारा सदा पूजनीय है। यहाँ रहने वाले सभी लोगों की सदा आकर्षण योग्य और दूसरों के लिये आदर्शरूप भक्ति होनी चाहिए।
व्याख्या : हमारी पाठ्यपुस्तक पीयूषम् के पाठ 'भारतमहिमा' का यह श्लोक मनाहमारे देश के गौरव तथा इसके प्रतिं हमारी देशभक्ति की विशेषता पर प्रकाश डालता है। कवि यह कहना चाहता है कि शोभा से भरपूर हमारा देश भारत संसार का गौरव है और हमारे लिये यह सदा पूजनीय है। इसके प्रति हमारी देशभक्ति इतनी उत्कट होनी चाहिए कि वह दूसरों के लिये आकर्षण के योग्य तथा आदर्शरूप हो। अर्थात् हमारी तथा दिव्य देशभक्ति की उत्कट भावना को देखकर दूसरे देश के लोग भी इसे आदर्श मान इसे अपनावे ।